सवेरा- गुरबीर ‘इलाही’

हर बात बनते-बनते बिगड़ जाती है,
ना जाने ज़िन्दगी कितने इम्तिहान चाहती है।
हर रोज़ लगता है कि सवेरा होगा,
अब ना रात का गहरा अँधेरा होगा,
ना जाने कब वो सहर होगी,
जब हर तरफ अमन की लहर होगी।
ना कोई बच्चा भूख से रोयेगा,
हर शख्स सकून की नींद सोयेगा,
न बन्दूक की गोली चलेगी,
ना खौफ के साये रात ढलेगी।
क्या ऐसा भी एक दिन आयेगा,
जब हर कोई अमन का गीत गायेगा।
मुझे यकीन है कि एक दिन ऐसा सवेरा भी आयेगा,
जो हर बिगड़ी बात को बनाएगा।

– गुरबीर ‘इलाही’

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